Friday, May 17, 2013

इंडियन प्रीमियर लीग या इंडियन दागी लीग




इंडियन प्रीमियर लीग या इंडियन दागी लीग

आईपीएल. बोले तो इंडियन प्रीमियर लीग. लेकिन कुछ विवादों ने इसको कई नाम दे डाले हैं. मसलन इंडियन पैसा लीग, इंडियन पचड़ा लीग, इंडियन पकाऊ लीग और जाने क्या क्या. इस बार आईपीएल की साख पर थोड़ा और बट्टा लगा और फिर से नामकरण हो गया. अबकी बार नाम मिला इंडियन फिक्सिंग लीग. 2008 में आईपीएल की आधारशिला रखी गई और तब से ही इसको अलग अलग तरह की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. कभी आईपीएल, पूर्व आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी की वजह से सुर्खियों में रहा, तो कभी चीयर लीडर्स ने इसे आलोचकों के निशाने पर रखा, एक मौका तो ऐसा भी आया जब दो भारतीय खिलाड़ी अलग अलग फ्रेंचाईजी टीमों से खेलते हुए आपस में ही भिड़ गए, तो थप्पड़ की गूंज ने आईपीएल को फिर से कमेंट का शिकार बना दिया. लेकिन ये कुछ ऐसे विवाद थे, जिसका बहुत प्रतिकूल असर दर्शकों पर नहीं पड़ा और सभी ने इन विवादों के बीच आईपीएल को जमकर एंजॉय किया. 2008 से शुरु हुआ आईपीएल का सफ़र 2013 में पहुंच चुका है. इस बीच बड़े बदलावों को इस अट्रैक्टिव लीग ने देखा और जिया है. फिर चाहे इसके प्रेजेंटेशन का हर बार बदलता तरीका हो, नियमों में थोड़े फेरबदल हों, देश से बाहर (साउथ अफ्रीका) आईपीएल का आयोजन हो या फिर कुछ नई फ्रेंचाईजी टीमों( पुणे वॉरियर्स, सनराईजर्स हैदराबाद, डेक्कन चार्जर्स और कोच्चि टसकर्स) का आना जाना हो. लेकिन लोगों ने आईपीएल और इसके देशी, विदेशी खिलाड़ियों को हर बार सिर आंखों पर बिठाया है. जिस बात का डर क्रिकेट में हमेशा लगा रहता है, वो आईपीएल के पिछले पांचो सीजन में तो उजागर नहीं हुई, लेकिन छठे सीज़न में फिक्सिंग के फांस में आईपीएल दाग़दार हो ही गया. भले मैच फिक्सिंग न हुई हो, लेकिन स्पॉट फिक्सिंग भी कोई छोटी बात नहीं है. इस बार नाम तीन भारतीय क्रिकेटरों (एस श्रीसंत, अंकित चव्हाण, अजीत चंडीला ) का सामने आया है, पुलिस के पास इनके फिक्सिंग में फंसे होने के पुख्ता सबूत भी हैं. लोगों को सबसे बड़ा झटका श्रीसंत का नाम आने से लगा है. जो लोग आज तक स्टेडियम और इसके बाहर श्रीसंत का नाम गर्व से अपने माथे और पोस्टर पर लिख कर श्रीसंत श्रीसंत चिल्लाते नजर आते थे, वही आज श्रीसंत के पोस्टर पर जूते मारकर श्रीसंत श्रीसंत चिल्लाते नजर आ रहे हैं. लेकिन इस सब से एक बात तो साफ होती है कि पैसे की भूख किसी को भी कुछ भी करने के लिए राज़ी कर सकती है, फिर चाहे वो देश के साथ ग़द्दारी हो या अपने ज़मीर के साथ. अब सवाल उठता है कि ये सब रुके कैसे. बीसीसीआई की इस पैसा लीग में करप्शन को रोकने के लिए आईसीसी भी निगरानी करती है, लेकिन फिर भी ऐसे कामों को रोक नहीं पाती. बीसीसीआई के मुताबिक उसने हर तरीके से पारदर्शी तौर पर इस लीग को कराने के उपाय किए हैं, और कोई ऐसा दरवाज़ा भी खुला नहीं छोड़ा जहां से कुछ गड़बड़ हो सके. लेकिन ऐसे कामों को अंजाम देने के लिए बीसीसीआई की नाक के नीचे कितने गुप्त दरवाजे और रोशनदान बनें हैं, इस बारे में बीसीसीआई को गंभीरता से सोचने की जरुरत है. वरना एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि हर एक बॉल पर लगे चौके और छक्के को दर्शक शक की निगाह से देखेंगे. खैर ये बात सही है कि दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन ऐसे मामलों के सामने आने के बाद ना केवल उस खिलाड़ी की बदनामी होती है, बल्कि उस देश की भी होती है जिसका अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ये खिलाड़ी प्रतिनिधित्व करते हैं. मैं व्यक्तिगत तौर पर इन खिलाड़ियों का न तो बचाव कर रहा हूं, न ही किसी भी तरह का समर्थन. लेकिन क्या इन खिलाड़ियों को रंगे हाथों पकड़ने के बाद इनके नामों को इस तरीके से प्रदर्शित किया जाना ठीक है ? क्या आंतरिक रुप से किसी एक्शन कमिटी को इन पर कार्रवाई नहीं करनी चाहिए ?  फिर चाहे गुप्त तरीके से इन पर लाइफ टाइम बैन लगाकर इन्हें खेलने से रोका जाना ही क्यूं न हो. क्योंकि इन पर हुई कार्रवाई पब्लिक डोमेन में आने के बाद इन खिलाड़ियों के साथ साथ देश को भी बदनाम करती है, साथ ही खेल के प्रति लोगों के उत्साह और प्यार को कम ही नहीं बल्कि ख़त्म भी कर सकती है. और इसका असर पूरी खिलाड़ी कौम पर भी पड़ेगा, जो एक खेल और उससे जुड़ी प्रतियोगिता के लिहाज़ से बिल्कुल भी ठीक नहीं लगता.