Sunday, May 4, 2014

आओ जानें काशी




आओ जानें काशी

जहां मिलें साधु सन्यासी,
समझो पहुंच गए हो काशी,

मंदिरों की छाया निर्मल,
कलकल करता गंगा का जल,

उगता सूरज घाट चमकते,
अस्त हुए पर आरती करते,

भंग के रंग में मलंग हुए जो,
जय जय भोले करता है वो,

चंदन घिस कर माथे पर जब,
शंख पकड़ कर हाथों में तब,

गंगा की सौगंध हैं खाते,
सबको ही हरदम अपनाते,

जात न जाने, पात न जाने,
सबको एक सा ही पहचाने,

मंदिर वहीं, वहीं है मस्ज़िद,
काशी की अपनी ही है ज़िद,

मैं और तुम का सवाल कहां है,
हम की मिलती मिसाल यहां है,

स्कूल मदरसे सभी यहीं हैं
दिलों से जुदा यहां कोई नहीं है,

फिरका परस्ती नहीं हैं जाने,
नेताओं को सबक सिखाने,

तय करके सब ग्रह और राशि,
हो गई तैयार है काशी...

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