Thursday, March 10, 2011

इंसान बनाम जानवर




इंसान बनाम जानवर

एक बार हमने देखा एक कुत्ते कार में,
उसी वक़्त लगे हम अपने को मारने,


हमने कहा देखो ज़रा कुत्ते के ठाठ,
इसके आगे हमारी जिंदगी तो लगती है ख़ाक ,


ऐ सी लगी कार में ये बैठा है कुत्ता होके,
होना चाहिए बाहर जिसे वो तो अन्दर से भौंके,

अन्दर बैठा चाट रहा था वो मालकिन के गाल को,
मालकिन भी सोहला रही थी अपने कुत्ते के बाल को,


खा रहा था वो मालकिन के हाथ से बिस्कुट और ब्रेड,
ये देख देख कर बाहर हम तो हो रहे थे डेड,


इतने में एक लंगड़े भिखारी ने कार की खिड़की खटखटाई,
तो कार के अन्दर से गर्जन भरी आवाज़ बाहर आई,


कि आ जाते हो जब तब देखो भीख तुम मांगने,
देखी नहीं कार रुकते लगे खिड़की झाँकने,


फिर कुछ ऐसा देख कर मेरी आँखें रह गयी दंग ,
खोल कर दरवाज़ा कार का मालकिन चल दी कुत्ते के संग,


फिर हमने सोचा कि क्या ज़माना है,
बिस्कुट और ब्रेड कुत्ते खाते हैं,


और इंसान यहाँ दो वक़्त की रोटी को तरस जाते हैं,
फिर हमने कहा की अच्छा है भगवान,


बहुत किस्मती है वो कुत्ता
जो न बना इंसान, जो न बना इंसान, जो न बना इंसान...

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