Monday, April 11, 2011

मायावती का "समानता कार्ड"


मायावती का "समानता कार्ड"

"सामाजिक समानता के लिए बसपा को सत्ता में लायें" ये कहना है उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमों मायावती का... तमिलनाडु के चुनावी समर में वोटों को भुनाने की जुगत में लगी मायावती कुछ ऐसी ही बातें करती नज़र आ रही हैं...मायावती इन्हीं सब बातों के दम पर उत्तर प्रदेश की तरह बाकी राज्यों में भी अपना परचम लहराना चाहती हैं... लेकिन सामजिक समानता की बात कहने वाली ये दलित नेता शायद भूल गयीं हैं कि उत्तर प्रदेश में दलित फैक्टर ने ही इनको सी.एम की कुर्सी तक पहुँचाया है... और मायावती का दलित फैक्टर बसपा की राजनीति में आज भी किस क़दर रचा बसा है, ये किसी से छुपा नहीं है... फिर आखिर मायावती कौन सी सामजिक समानता कि बात कर रहीं हैं... उत्तर प्रदेश से जुड़ाव होने के कारण प्रदेश की राजनीति की थोड़ी बहुत समझ मुझे भी है... दलित उत्थान के कामों में दिल से जुटी रहने वाली मायावती अम्बेडकर ग्राम बना कर और ऐसी ही कई कल्याणकारी योजनाओं को आधार बनाकर किसको मुख्य धारा से जोड़ना चाहती हैं  और क्या कुछ करना चाहती हैं ,ये सब जानते हैं... अब बात यहाँ पर ये समझ नहीं आती कि मायावती, मुख्यमंत्री किसी सम्पूर्ण दलित प्रदेश की हैं या फिर ऐसे प्रदेश की जिसकी आबादी देश में सबसे ज्यादा है और जहाँ हर जाति और वर्ण के लोग वास करते हैं... जाति के नाम पर पहले से ही विभेद करने वाली मुख्यमंत्री बसपा के ज़रिये कौन सी सामजिक समानता की बयार चलाना चाहती हैं, जबकि बसपा के मूल से ही जातिगत राजनीति की बू हमेशा ही आती रहती है... मायावती को कोई ये याद दिलाये कि जब इन्होने सवर्णों का साथ निभाना शुरू किया तभी  प्रदेश के हर वर्ग के लोगों में उनकी छवि कुछ सुधार हुआ... राज्य में हर वर्ग के लोग रहते हैं और सही मायने में अगर सामाजिक समानता की बात की जाये तो उत्थान का आधार व्यक्ति की जाति नहीं बल्कि आर्थिक स्थिति होना चाहिए... जैसे जो जितना आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, उसकी उतनी ही मदद की जाये साथ ही हर तरह की ज़रुरत की आपूर्ति करके उसे मुख्य धारा से जोड़ा जाये... अगर मायावती के सामाजिक समानतावाद की तह में जायें तो यही पता चलेगा की दलितों की नेता और दलित की बेटी जैसे उपनामों से ख्याति पाने वाली उत्तर प्रदेश की इन मुख्यमंत्री के कामों से खुद कई दलित लोग भी परेशान हैं, क्यूंकि अपने जन्मदिन जैसे मौकों पर नोटों की माला पहनने वाली मायावती को धन की ज़ुबान शायद  ज्यादा समझ आती है... प्रदेश में अपराधों में थोड़ी बहुत कमी भले ही आई  हो पर पूरी तरह से अभी भी लगाम कसी नहीं जा पाई है... राज्य में विकास कहाँ कहाँ हो रहा है, ये किसी से छुपा नहीं है... और विकास की रफ़्तार क्या है इसकी तस्वीर आपको आसानी से देखने को मिल जायेगी...  राज्य कर्मचारियों को कितनी सुविधाओं से लैस किया जा रहा है, इसका अंदाजा आप राज्य कर्मचारियों के व्याकुल ह्रदय से निकली वेदनाओं की आवाजों से साफ़ लगा सकते हैं... तो कुल मिलाकर इन सारी बातों का मूल यही निकलता है, कि  मायावती बाहरी राज्यों की बजाये अपने मूल प्रदेश में अपनी और पार्टी की साफ़ छवि बनाने का प्रयास करें... साथ ही सामाजिक समानता की जगह सामाजिक सुधारों की ओर ध्यान ज्यादा दें... हो सकता है कि सामजिक सुधारों से ही समाज में समानता आ जाये...

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